"Anant Koti Brahmand Nayak Raja Dhiraj Yogi Raj Par Brahm Shri Satchidananda Sadguru Sai Nath Maharaj Ki Jai."

sai baba history

Through the website www.saijagat.com, we will endeavor to provide every possible information of the MorningVision to all the devotees. Although Shreesaibaba ji has many temples throughout India, but his main temple is a famous town in Shirdi district of Maharastra, where SAI Baba ji's world famous temple is located. Ramnavami, Guru purnima and Vijaydashmi is the main festivals Shree Sai Baba ji.

शिर्डी साईं बाबा का इतिहास

श्री साईं बाबा का जन्म 28 सितंबर 1835 को महाराष्ट्र के पाथरी गांव में हुआ था। इनके जन्म स्थान, जन्म दिवस और असली नाम के बारे में कोई भी प्रमाणित जानकारी नहीं है। लेकिन एक अनुमान के अनुसार साईं बाबा का जीवन काल 1838 से 1918 के बीच माना जाता है। अधिकांश विवरणों के अनुसार बाबा एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे और बाद में एक सूफ़ी फ़क़ीर द्वारा गोद ले लिये गये थे। आगे चलकर उन्होंने स्वयं को एक हिन्दू गुरु का शिष्य बताया था। ऐसा माना जाता है कि सोलह वर्ष की अवस्था में साईं बाबा पश्चिम भारतीय राज्य महाराष्ट्र के अहमदनगर के शिरडी गाँव पहुँचे थे और जीवन पर्यन्त उसी स्थान पर निवास किया। शुरुआत में शिरडी के ग्रामीणों ने पागल बताकर उनकी अवमानना की। लेकिन कुछ समय बाद उनके सम्मोहक उपदेशों और चमत्कारों से आकर्षित होकर हिन्दुओं और मुस्लिमों की एक बड़ी संख्या उनकी अनुयायी बन गयी है। वे एक सन्यासी बनकर जिन्दगी जी रहे थे, और हमेशा नीम के पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठे रहते या आसन में बैठकर भगवान की भक्ति में लीन हो जाते थे। साईं बाबा मुस्लिम टोपी पहनते थे और जीवन में अधिंकाश समय तक वह शिरडी की एक निर्जन मस्जिद में ही रहते थे। जहाँ पर कुछ सूफ़ी परंपराओं के पुराने रिवाज़ों के अनुसार वह धूनी रमाते थे। मस्जिद का नाम उन्होंने ’द्वारकामाई’ रखा था, जो निश्चित रूप से एक हिन्दू नाम था। ऐसा कहा जाता है कि उन्हें पुराणों, भगवद्गीता और हिन्दू दर्शन की विभिन्न शाखाओं का अच्छा ज्ञान था और वे संत के साथ-साथ वे एक स्थानिक हकीम की भूमिका भी निभाते थे और बीमार लोगो को अपनी धुनी से ठीक करते थे। साईबाबा अपने भक्तो को धार्मिक पाठ भी पढ़ाते थे, और हिन्दुओ को रामायण और भगवत गीता और मुस्लिमो को कुरान पढने के लिए कहते थे। बाबा के नाम की उत्पत्ति ’साईं’ शब्द से हुई है, जो मुस्लिमों द्वारा प्रयुक्त फ़ारसी भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ है - पूज्य व्यक्ति और बाबा पिता के लिये एक हिन्दी शब्द। साई बाबा एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु और फ़कीर थे। जो धर्म की सीमाओं में कभी नहीं बंधे थे। वास्तविकता तो यह है कि उनके अनुयायियों में हिन्दू और मुस्लिमों की संख्या बराबर थी। श्रद्धा और सबूरी यानी संयम उनके विचार - दर्शन का सार है। उनके अनुसार कोई भी इंसान अपार धैर्य और सच्ची श्रद्धा की भावना रखकर ही ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है। कुछ व्यक्ति तो ऐसा भी कहते थे कि साईं के पास अद्भुत दैवीय शक्तियाँ थीं। जिनके सहारे वे लोगों की सहायता किया करते थे। लेकिन खुद कभी साईं ने इस बात को नहीं स्वीकार किया। उनके चमत्कार अक्सर मनोकामना पूरी करने वाले रोगियों के इलाज़ से संबंधित होते थे। वे कहा करते थे कि मैं लोगों की प्रेम भावना का ग़ुलाम हूँ। सच तो यह है कि साईं बाबा हमेशा फ़कीर की साधारण वेशभूषा में रहते थे। वे जमीन पर सोते थे और भीख माँग कर अपना गुजारा करते थे। कहते हैं कि उनकी आंखों में एक दिव्य चमक थी। जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती थी। साई बाबा का एक ही लक्ष्य था कि - ‘लोगों में ईश्वर के प्रति विश्वास पैदा करना’। सबका मालिक एक है इस उद्घोषक वाक्य से शिरडी के साईं बाबा ने संपूर्ण जगत को सर्वशक्तिमान ईश्वर के स्वरूप का साक्षात्कार कराया। उन्होंने मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताया और कई ऐसे चमत्कार किये, जिसके कारण लोग उन्हें भगवान की उपाधि देने लगे। आज भी साईं बाबा के भक्तों की संख्या को लाखों - करोड़ों में होती है। साईं बाबा अपनी घोषणा के अनुरूप 15 अक्टूबर, 1918 को विजया दशमी के विजय-मुहूत्र्त में शारीरिक सीमा का उल्लंघन कर निजधाम प्रस्थान कर गये। इस प्रकार ’विजया दशमी’ उनका महासमाधि पर्व बन गया। कहते हैं कि आज भी सच्चे साईं भक्तों को बाबा की उपस्थिति का अनुभव होता है।